औरतों में माहवारी क़ुदरत का दिया वो तोहफा है जो उसे समाज में औरत का दर्जा दिलाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि इंसान के जन्म का दारोमदार इसी पर टिका है। माहवारी से पहले और इसके दौरान एक स्त्री की अपने शरीर और ख़ुद से लड़ाई चलती रहती है।
उसके व्यवहार में बहुत से बदलाव नज़र आने लगते हैं। आज के समय में ये सुनने में थोड़ा अजीब तो लगेगा लेकिन प्राचीन काल में इसे औरत को पड़ने वाले दौरे के तौर पर देखा जाता था। यहां तक कि मिस्र से लेकर ग्रीस के दार्शनिकों का मानना था कि हर महीने औरत के मन में सेक्शुअल डिज़ायर बढ़ जाता है।ये सही बात है कि माहवारी शुरू होने से पहले औरत के मूड में बदवाल आता है, चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है। शरीर के किसी ना किसी हिस्से में अजीब खिंचाव या दर्द होने लगता है। लेकिन ऐसा हर स्त्री के साथ हो ये ज़रूरी नहीं है।
आज भी कम पढ़े-लिखे लोग लड़कियों को समझाते हैं कि शादी के बाद दर्द की ये शिकायत दूर हो जाएगी। लेकिन मॉडर्न साइंस और रिसर्च माहवारी के दौरान महिलाओं में होने वाले इस बदलाव के कई पॉज़िटिव पहलू देखती है।
एक रिसर्च के मुताबिक़, माहवारी पूरी होने के बाद औरतों में ख़ास तरह का बदलाव होता है। माहवारी के 3 हफ़्ते बाद उनके कम्युनिकेशन स्किल बेहतर हो जाते हैं। जिन बातों को दूसरे लोग कहने से डरते हैं, उन्हें वो खुलकर कह देती हैं। जैसे ही माहवारी का नया चक्र शुरू होता है, उनका दिमाग तेज़ी से काम करना शुरू कर देता है।
पुराने समय में लोग मानते थे कि औरत के व्यवहार में ये बदलाव पेट में चल रही उथल-पुथल की वजह से होते हैं। जबकि असल में इन बदलावों का सोर्स ओवरी है, जहां ओएस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन नाम के दो हार्मोन पूरे महीने अलग-अलग मात्रा में निकलते रहते हैं और पेट की दीवार के चारों तरफ़ एक चादर बनाते हैं।
यही हार्मोन फ़ैसला करते हैं कि egg कब तैयार करना है। इसी हार्मोन की वजह से स्त्री की सेहत और व्यवहार दोनों पर असर पड़ता है। पीरीयड्स पर 1930 के दशक से रिसर्च की जा रही है। वैज्ञानिकों को इसपर रिसर्च की प्रेरणा सिर्फ़ महिलाओं की बायोलॉजी समझने से नहीं मिली बल्कि इस जिज्ञासा से मिली की स्त्रीयां, पुरुषों से किन मायनों में और कितना अलग हैं। इन दोनों के बीच अंतर की बुनियादी मिसाल हमारे दिमाग़ में है।
ब्रिटेन की डरहम यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट मार्कस हसमैन के मुताबिक़, वर्षों तक यही माना जाता रहा कि पुरुष और स्त्री दोनों अपने हार्मोन्स की वजह से हर महीने इस तरह के चक्र से गुज़रते हैं। औरतों में माहवारी होती है और पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बढ़ता घटता है।
औरतों का दिमाग़ मर्दों से अलग काम करता है। उनके दिमाग़ की थ्योरी मर्दों से बेहतर होती है। यही वजह है कि उनके कम्युनिकेशन और सोशल स्किल पुरुषों से बेहतर होते हैं।
शिकागो यूनिवर्सिटी की मनोवैज्ञानिक पाउलिन मकी का कहना है कि औरतों का ज़हन किसी भी शब्द और उसके पीछे छुपी भावनाओं को पुरुषों के मुक़ाबले तेज़ी से याद रखता है। यही नहीं औरतें मर्दों के मुक़ाबले तेज़ी से बोल सकती हैं और वो शब्दकोश के मामले में भी पुरुषों से ज़्यादा धनी होती है।
माना जाता है कि हज़ारों वर्ष पहले औरतें अपने बच्चों को अच्छे-बुरे के बीच फ़र्क़ करने के उपदेश देती रही हैं, शायद इसलिए भी लड़कियों की बोलने की प्रैक्टिस अच्छी होती है। लेकिन क्या इस वजह के पीछे भी हार्मोन ज़िम्मेदार हैं? ये बड़ा सवाल है।
इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए मनोवैज्ञानिक पाउलिन मकी ने बाल्टीमोर के जेरोन्टॉलजी रिसर्च सेंटर के कुछ रिसर्चर्स के साथ मिलकर एक तजुर्बा किया। उन्होंने ये पता लगाने की कोशिश की कि औरतों में ओएस्ट्रोजन का बढ़ता-घटता स्तर हर महीने उन पर कैसा और कितना असर डालता है।
इसके लिए उन्होंने दो स्तर पर रिसर्च शुरू किया। हालांकि इसमें केवल 16 महिलाएं ही प्रतिभागी थीं। इन सभी का पीरियड शुरू होने से पहले और पीरियड ख़त्म होने के बाद का बर्ताव देखा गया।
रिसर्च के नतीजे हैरान करने वाले थे। सभी प्रतिभागी महिलाओं में जिस वक़्त फ़ीमेल हार्मोन का स्तर ज़्यादा था, तो वो पुरुषों के मुक़ाबले चीज़ें याद रखने में कमज़ोर थीं। लेकिन जब फ़ीमेल हार्मोन का स्तर कम हुआ तो उनकी ये कमज़ोरी दूर हो गई।
वो पुरुषों के मुक़ाबले नए शब्द तेज़ी से याद रखने लगीं। जिन शब्दों को लेकर संशय बना रहता है, उन्हें महिलाएं तेज़ी से और बिल्कुल सही बोल और समझ लेती हैं। बेहतर कम्युनिकेशन के लिए इसे ख़ूबी माना जाता है। अपनी रिसर्च के बुनियाद पर मनोवैज्ञानिक मकी मानती हैं कि औरतों में हर महीने होने वाले इस बदलाव की वजह ओएस्ट्रोजन हार्मोन है।
फ़ीमेल हार्मोन दिमाग़ के दो हिस्सों पर अपना गहरा असर डालते हैं। पहला हिस्सा है हिप्पोकेम्पस जहां तमाम तरह की यादें जमा रहती हैं। हर महीने जब फ़ीमेल हार्मोन रिलीज़ होते हैं, तो दिमाग़ का ये हिस्सा बड़ा हो जाता है।
दूसरा हिस्सा है एमिग्डाला। दिमाग़ के इस हिस्से का संबंध जज़्बातों और फ़ैसला करने की ताक़त से होता है। हर महीने फ़ीमेल हार्मोन रिलीज़ होने से महिलाएं दिमाग़ के इस हिस्से का इस्तेमाल करते हुए किसी भी परिस्थिति को दूसरों के मुक़ाबले बेहतर तरीक़े से देखती हैं।
हर महीने बढ़ने वाले ओएस्ट्रोजन हार्मोन की वजह से ही महिलाएं किसी भी तरह के डर को पहले से भांप लेती हैं। मनोवैज्ञानिक मकी का मानना है कि औरतों की माहवारी का उनके दिमाग़ पर असर पड़ना co-incident है।
पुरुष और महिलाओं के दिमाग़ के काम करने के तरीक़े में एक और बड़ा फ़र्क़ है। कोई भी काम करने में पुरुष के दिमाग़ का एक हिस्सा काम करता है। जबकि औरतों के दिमाग़ के दोनों हिस्से काम करते हैं। दिमाग़ के दाएं या बांए हिस्से के काम करने के तरीक़े का संबंध हाथ से है।
मान लिजिए अगर कोई अपने दाएं हाथ का इस्तेमाल करता है तो भाषा का ज्ञान उसके दिमाग़ के बाएं हिस्से में होता है। लेकिन औरतों के दिमाग़ की संरचना इससे भी अलग होती है। अब ऐसा क्यों है, ये अभी तक रहस्य है।
साल 2002 में की गई रिसर्च के मुताबिक़ जब औरतों में ओएस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन रिलीज़ होते हैं तभी उनके दिमाग़ के दोनों हिस्से ज़्यादा तेज़ी से काम करते हैं। इससे महिलाओं की सोचने की क्षमता में लचीलापन आता है और दिमाग़ का दायां हिस्सा तेज़ गति से काम करने लगता है।
देखा गया है कि जिन लोगों के दिमाग़ का दायां हिस्सा ज़्यादा काम करता है वो गणित के प्रश्न तेज़ी से हल कर लेते हैं। शरीर में हर महीने होने वाले बदलाव से दिमाग़ के काम करने के तरीक़े पर असर पड़ता है। महिलाओं में ये बदलाव पॉज़िटिव होते हैं।