पूर्वोत्तर के लोगों के साथ देश के विभिन्न शहरों में जब-तब ज्यादतियां देखी जाती हैं। इस बार लोग उन्हें चीनी मूल का समझ कर भेदभाव करते देखे जा रहे हैं। चूंकि पूर्वोत्तर के लोगों का हुलिया चीनी लोगों से मिलताजुलता है, इसलिए कुछ लोगों को कई बार यह भ्रम हो जाता है। चूंकि कोरोना विषाणु चीन से पैदा होकर पूरी दुनिया में फैल रहा है, इसलिए उसके प्रति रोष देखा जा रहा है। यहां तक कि कुछ राष्ट्राध्यक्षों तक ने चीन को लेकर तल्ख टिप्पणियां की थीं। इसका भारत पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। चीन के साथ भारत के रिश्ते अक्सर तनाव भरे देखे जाते हैं, खासकर दोनों देशों से लगी सीमा पर सैन्य तनाव जब-तब उभर आता है। इसलिए कई मौकों पर लोग चीन में बनी वस्तुओं के बहिष्कार तक की मांग करते रहे देखे जाते हैं। कुछ साल पहले दिल्ली और उससे सटे शहरों में पढ़ाई करने आए पूर्वोत्तर के युवाओं के साथ बड़े पैमाने पर हिंसक हमलों, उन्हें किराएदारी से बेदखल करने, दुकानों में खरीदारी आदि से रोकने की कोशिशें देखी गई थीं। उसमें कई युवा गंभीर रूप से घायल हो गए थे, तो कुछ की जान भी चली गई थी। इस बार भी कुछ जगहों पर उनके प्रति हिकारत का भाव देखा जा रहा है। स्वाभाविक ही ऐसी घटनाओं से आहत मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा ने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से इस नस्ली भेदभाव पर लगाम लगाने की अपील की है। उन्होंने अपने ट्वीट में एक वीडियो भी साझा की है, जिसमें कुछ नगा छात्रों को किराने की एक दुकान में घुसने से रोका जा रहा है। जोरामथंगा ने अपनी यह ट्वीट पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों असम, मेघालय, नगालैंड, और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों को भी नत्थी कर भेजी है। वे सब भी इन घटनाओं से आहत हैं। भारत एक गणतांत्रिक देश है, जिसमें सभी राज्यों के नागरिकों को कहीं भी जाकर पढ़ाई-लिखाई, रोजगार, नौकरी आदि करने या फिर बस जाने का संवैधानिक अधिकार है। उन्हें इन अधिकारों से वंचित करना गणतांत्रिक मूल्यों हनन है। पर देशभक्ति या फिर प्रादेशिक अस्मिता के नाम पर कई बार लोग इस संवैधानिक तकाजे को भुला बैठते हैं और पूर्वोत्तर के लोगों के साथ नस्ली भेदभाव करते देखे जाते हैं। यों भी पूर्वोत्तर के लोगों को चिढ़ाने की मंशा से उनके लिए अपमानजनक संबोधन आम बात है। वहां से आई लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं भी कुछ अधिक देखी जाती है। एक देश के खास हिस्से के कुछ लोगों के साथ अपने ही देश के नागरिकों का इस तरह का नस्ली, अशोभन या फिर हिंसक व्यवहार किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं मानी जा सकती। यह समय एक-दूसरे के सहयोग से कोरोना जैसी महामारी से पार पाने का है। बंदी के इस दौर में जब लोग अपने घरों से दूर जगह-जगह फंसे हुए हैं, बहुत सारे लोग बेसहारा लोगों की मदद के लिए आगे आते देखे जा रहे हैं, यथाशक्ति सहयोग का हाथ बढ़ा रहे हैं, उसमें अपने ही देश के कुछ नागरिकों को बुनियादी जरूरत की वस्तुओं तक से महरूम कर देने की कोशिशें अमानवीय और असहिष्णुता ही कही जाएंगी। भारतीय समाज इतना असहिष्णु कभी नहीं रहा कि संकट के समय मदद के बजाय अपनी दुर्भावना का प्रदर्शन करे, जरूरतमंदों को बेदखल करने का प्रयास या उनके साथ हिंसक बर्ताव करे। फिर ऐसी हरकतों से चीन को भला क्या सबक सिखाया जा सकता है। इससे लोगों के भीतर बैठी अमानवीयता का ही प्रदर्शन होता है।
सम्पादकीय सम्पादक की कलम से नस्ली भेदभाव